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१८१ ॥ श्री लुक्कन शाह जी ॥


पद:-

सिय राम रा़धे श्याम कमला बिष्णु हरदम ही भजौ।

सतगुरु से मारग जानि कै जग जाल को जियतै तजौ।

तन मन व प्रेम को एक करि धरि शब्द पै सूरति मंजौ।

धुनि ध्यान लय परकाश सन्मुख षट दरश अद्भुत सजौ।

सुर मुनि मिलैं अनहद सुनो निर्बेर निर्भय ह्वै गजौं।

अन्त में तन छोड़ि कै साकेत में चलि कै रजौ।६।