१९१ ॥ श्री चर चरशाह जी ॥
पद:-
ले मन राम नाम धन लूट।
सतगुरु करौ भजन बिधि जानौ कौन गहै फिर खूँट
आपै आप भगैं तन ते सब खर सियार श्वान सूकर ऊँट।
सारे पाप नाश हों छिन में निर्भय पावो छूट।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने जूट।
सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद ताल सकत नहिं टूट।५।
अमृत पिओ बहै निशि बासर गगन ते सोता फूट।
अन्त त्यागि तन राम धाम लो जग जिमि टूटी बूट।७।