१९५ ॥ श्री भर भर शाह जी ॥ (२)
पद:-
सतगुरु करि नाम जाप जानि मन लाया जिसने।
सारे पापों को पकरि बांधि जलाया उसने।
ध्यान धुनि नूर लय में गोता लगाया जिसने।
श्याम श्यामा कि छटा सामने छाया उसने।
देव मुनि संघ बैठि हरि क यश गाया जिसने।५।
साज अनहद भि सुना अमी पी पाया उसने।
शक्ति नागिन को जगा चक्र चलाया जिसने।
कमल सब फूलि गये महक उड़ाया उसने।
दीनता शान्ति सत्य प्रेम तन छाया जिसने।
भर भर कहते हैं बिजय ढोल बजाया उसने।१०।
शेर:-
जिसने न सार जाना उसके न चश्म काना।
सतगुरु बिना दिवाना तन मन में पाप साना।
छूटै न आना जाना, पायो नहीं ठिकाना।
था गर्भ रिन चुकाना, सो भूल जग लुभाना।
यम अन्त मारैं ताना, क्यों बांधै मर्द बाना।
भर भर कहैं जो माना, सोई हुआ है दाना।६।
पद:-
मानो सब जन सखुन सुनि हमार चलो सतगुरु की शरन।
शेर: प्रेम तन मन से लगा निज का संभालिये भाई।
बृथा बातों में समय अपना न टालिये भाई॥
टेक: यहां कोई नहीं है तुम्हार चलो सतगुरु की शरन।२।
शेर: ध्यान धुनि नूर समाधी में जहां जाओगे।
सारे पापों के ताप छिन ही में जलाओगे॥
टेक: करैं सुर मुनि आय नित प्यार चलो सतगुरु की शरन।
शेर: साज अनहद की ताल घट में सुनौ बाजै जी।
राम सीता कि छटा सामने में राजै जी॥
टेक: चखो अमृत मगन निशि बार चलो सतगुरु की शरन।
शेर: जागि कुण्डलिनी शक्ति चक्र घुमा लेवैगी।
कमल सातों को उलटि चट से खिला देवैगी।
टेक: खुशबू पाकर के हो मतवार चलो सतगुरु की शरन।
शेर: अन्त तन छोड़ि बास राम धाम होवैगा।
रूप रंग हरि सा मिलै फिर न गर्भ रोवैगा॥
टेक: कहैं भर भर प्रभु सुमिरन है सार चलो सतगुरु की शरन॥