१९५ ॥ श्री भर भर शाह जी ॥ (४)
पद:-
नाम पर तन मन प्रेम करके लगाओ लाला।
सतगुरु से मार्ग जानि निज को मिटावो लाला।
ध्यान धूनि नूर पाय लय में समाओ लाला।
श्याम श्यामा कि छटा सामने छाओ लाला।
देव मुनि संग बैठि नाम यश पाओ लाला।५।
ताल अनहद कि सुनो अमी पी पाओ लाला
जियति सब जानि फेरि गर्भ न आओ लाला
भर भर कहते हैं मर्द बनि न लुकाओ लाला।८।
सोरठा: चन्द रोज़ के बाद, जागै फिर भारत लला।
प्रगटै धर्म अनादि, शान्ति होंय दुख के कला।
सुर मुनि रहे मनाये, या में कछु संशय नहीं
भर भर कहैं सुनाय, सुखी होय भारत मही॥
दोहा:-
पुरुष बने अबला फिरैं, अबला पुरुष क भेश।
भर भऱ कह यह चरित लखि, लज्जित भा मम देश॥