१९६. ॥ श्री बकबक शाह जी ॥
हर दम तार लगा रहै घर से।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो पहुँच जाव तब सर से।
ध्यान धुनी परकाश समाधी होय छुटो भव डर से।
अनहद सुनो बजै निशि बासर पिओ अमी घन बर से।
सुर मुनि आय लिपटि दुलरावैं कर दाहिन शिर पर से।५।
नागिन जगै चक्र सब बैधैं कमल खिलैं क्या फर से।
सिया राम प्रिय श्याम हरि सन्मुख निरखौ दर से।
बक बक शाह कहैं सुनि गुनि अब चढ़ो नाम लै जर से।८।