२०९ ॥ श्री कृष्ण मोहन वैश्य जी॥
पद:-
सूरति ताली शब्द है ताला। सतगुरु करि कै खोलौ लाला।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि होय फिरै मन घट का माला।
अनहद सुनो देव मुनि दर्शैं पिओ अमी रस हो मतवाला।
सन्मुख राधा माधौ सोहैं जे करते जग को प्रति पाला।
शान्ति दीनता को गहि करके जे जन फिर करिहैं ख्याला।५।
वै निज पुर में बैठक पैहैं मेटि करम गति भाला।
नाहीं तो जग जाल में नाचैं रहै बना मूँह काला।
मानि बचन चेतो नर नारी भाखेन सत्य हवाला।८।