२१४ ॥ श्री मुनाफ़ा शाह जी ॥
पद:-
करै मुरशिद मिलै मारग जिसे हो शौक सुमिरन की।
ध्यान धुनि नूर लय पावै जहां सुधि बुधि न तन मन की।
पियै कौसर मिलैं सुर मुनि सुनै अनहद रहा ठनकी।
रहै सन्मुख सदा झाँकी राधिका श्याम जग धन की।
जियति में तै करो यारों मिटै भय तब तो यम गन की।५।
रहौ निर्बैर औ निर्भय तुम्हैं सकता न कोइ हनकी।
असुर सारे भगैं डर के रोकैं वार एक छन की।
मुनाफा कह अन्त तन तजि लेव रंग रूप हरि पन की।८।