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२१३ ॥ श्री तमाशा शाह जी॥


पद:-

मुरशिद से एक हाला जप भेद जान लीजै।

धुन ध्यान नूर लय हो सन्मुख में रूप कीजै।

सुर मुनि के होंय दर्शन कौसर क जाम पीजै।

अनहद बिमल सुनो घट सूरति उधर तो दीजै।

करि प्रेम लागि जाओ नर तन बृथा न छीजै।५।

मन जियति करि लो काबू तब असुर फिर न मीजैं।

धन मुख्य कह तमाशा बस है वो शब्द बीजै।

पावौ तो लिय निजपुर नाहीं तो जग में भीजै।८।