२१५ ॥ श्री रिहाई शाह जी ॥ (२)
कन्हैया नन्द के लालन हमै तो लागते नीके।
करो मुरशिद भजन जानो बृथा क्यों घूमते फीके॥
ध्यान धुनि नूर लय पाओ जाँय मिटि भाल के लीके।
सदा सन्मुख रहैं प्यारे तुम्हारे प्रेम में बीके॥
असुर सारे निकरि भागैं जौन शत्रू बने जीके।
देव मुनि आय दें दर्शन सुनो अनहद अमी पी के।
खिलावैं उमा रमा शारद तुम्हैं भी नित बरे घी के।
अन्त तन त्यागि निज पुर लो मिटैं भव जाल के छीके।