२२४ ॥ श्री रोवन शाह जी ॥
पद:-
दुख हम अपने घर का रोई।
अजा पकड़ि सन्तन को जकड़िस बिरलै बचे हैं कोई।
पांच कि आंच में हर दम नाचत भजन कौन बिधि होई।
झूठ कपट सत्संगी भंगी मोह नींद रहे सोई।
या से नेकौ सूझत नाहीं पाप बीज रहे बोई।५।
सतगुरु करै भजन बिधि जानै जियति लेय सब पोई।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि कर्म देंय दोउ धोई।
अमृत पियैं सुनैं घट अनहद मिलैं देव मुनि टोई।
नागिन जगै चक्र षट घूमैं सातौं कमल फुलोई।
उड़ै तरंग कहै को मुख से मन मति जाय निचोई।१०।
सुखमन स्वांस विहँग मारग ह्वै निज धन ले खुब ढोई।
असुरन की सब फौज भागि जाय सकै कौन फिर नोई।
सन्मुख राम सिया छबि छावैं दृष्टि में दृष्टि मिलोई।
प्रेम मथानी सूरति कुरधन ले जो शब्द बिलोई।
रोवन शाह कहैं सोइ प्राणी जनम मरण दे खोई।
अगणित जन्म के सुकृत उदय हों जानि सकै तब कोई।१६।