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२२५ ॥ श्री पद्दन शाह जी ॥


पद:-

दुलहिन श्यामा दुलहा श्याम को हर दम निरखौ सन्मुख छाय।

नर नारी सतगुरु करि जप बिधि जानि जपौ मन लाय।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय सुधि बुधि जहां हेराय।

सुर मुनि मिलैं चखौ नित अमृत अनहद सुनो बधाय।

सूरति शब्द क मारग यह है निर्भय देत बनाय।

अन्त त्यागि तन राम धाम हो जग चक्कर मिटि जाय।६।