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२४७ ॥ श्री बिष्णु दत्त राम जी ॥


पद:-

सतगुरु करि निरखौ सन्मुख गोपाल।

नाम की धुनी ध्यान लय होवै क्या परकाश बिशाल।

अनहद घट में हर दम बाजै सुनिये प्यारी ताल।

सुर मुनि आय पास में बैठें हरि यश बरनैं आल।

नीरज खिलैं चक्र हों बेधन जगै नागिनी हाल।

जियतै मुक्ति भक्ति हो हासिल मिटै करम गति भाल।६।