२४६ ॥ श्री राम जी ॥
पद:-
मन तुम पिओ नाम का प्याला।
हर दम मस्त रहौ तब प्यारे टूटै द्वैत का ताला।
सतगुरु करि सब भेद जान लो फेरौ घट में माला।
ध्यान प्रकाश समाधि होय तब मिटै करम गति भाला।
घट में अनहद बाजा बाजै धुनि सम कैसी आला।५।
सुर मुनि आय के दरशन देवैं बोलै बचन रसाला।
नैनन सन्मुख हर दम राजैं सिया औ दशरथ लाला।
श्री राम कहैं अन्त छोड़ि तन चलि बैठो सुखसाला।८।