२४९ ॥ श्री अफ़जल खां जी ॥
पद:-
बेद शास्त्र उपनिषद संहिता औ पुरान का पढ़ना।
सार वस्तु पावैं नहिं बिरथा बाद बिवाद का गढ़ना।
जैसे ढोल के भीतर पोल है ऊपर खाल क मढ़ना।
ठोकर लागि फूटि गा घेरा बे रंग भे दोउ चढ़ना।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै तब हो आगे बढ़ना।५।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने कढ़ना।
मुक्ति भक्ति जियतै में मिलि जाय तन मन प्रेम में लढ़ना।
अफ़जल कहैं अन्त हो हरि पुर छूटि जाय सब पढ़ना।
पढ़ते कुरान बायबिल दिल में रहग नहीं।
मन मानी कर रहे हैं सुख दुख में कहीं।
अफ़जल कहैं सतगुरु बिना कूचा नहीं मिलै।
हा चश्म गोश बन्द हैं जग जाल में हिलै।१०।