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२५६ ॥ श्री सुस्त शाह जी ॥


चौपाई:-

जै श्री सतगुरु अधम उधारन। राम भजन में तन मन वारन।

जै नित्यानन्द जी बलिरामा। आय जगत कीन्ह्यो बहु कामा।

जै रघुनाथ दास सुख दानी। रामानन्द अंश हम जानी।

जै शंकरा चार्य्य शिव रुपं। जगत प्रचारयो चरित अनूपं।

जै रामानुज लखन के अंशं। आय जगत कियो दुख बिध्वंसं।५।

जै कबीर औ श्री रैदासा। सूरति शब्द क भेद प्रकाशा।

जै जग जीवन कोटवा बासी। भजनानन्द रूप गुण रासी।

जै दादू औ सुन्दर दासा। नाम रूप लय मारयो आसा।

जै नानक बिदेह की जोती। जग में नाम क बोयी मोती।

जै गौराङ्ग कृष्ण नट नागर। सोबरन से अति रूप उजागर।१०।

जै श्री रामानन्द नारायन। प्रगटे जगत हेतु सुखदायन।

जै ज्ञानेश्वर हरि अवतारा। जग में कीन्ह्यो चरित अपारा।

जै ईसा दाया की मूरति। गौर बदन अति सुन्दर सूरति।

जै पैगम्बर साहब मुहम्मद। गौर शरीर मजे का है कद।

जै लव कुश सिय राम के लाला। दुष्ट संहारि प्रजहिं प्रति पाला।१५।

जै श्री पृथ्वी जीवन गाई। निज आवरन कि फर्श बिछाई।

जै श्री वरुण देव बलवन्ता। जीवन तन मन सुक्ख भरन्ता।

जै श्री पवन देव बलवाना। जीवन का करते कल्याना।

जै श्री अगिनि देव सुखदाई। वस्तु कुवस्तु समान जलाई।

जै श्री गगन बने शाम्याना। जग तब भीतर माहिं समाना।२०।

जै बारह बराह गज चारी। शेष के आप सहायक कारी।

जै आठौ गण सुनिये बाता। कविता देवी के तुम ताता।

जै सब राग ताल सुर ग्रामा। जै अलाप सम धुनि परनामा।

जै सब साज तान गुण सुख जप। जै श्रृंगार छटा छबि लय तप।

जै श्री सत्य धर्म ब्रत नेमा। जै सन्तोष शील औ टेमा।२५।

जय श्री प्रेम पाठ विश्वासा। जै श्री श्रद्धा दया हुलासा।

जय श्री क्षिमा ज्ञान और स्वांसा। जय श्री ध्यान यज्ञ परकासा।

जय श्री मुक्ति भक्ति महरानी। जय श्री रेफ़ बिन्दु सुख खानी।

जय श्री पांच तत्व चारौं तन। जय श्री पांचौं मुद्रा चित मन।

जय अष्टाड़ग योग हठ योगा। जय श्री राज योग संयोगा।३०।

जय सब साधक सिद्ध सुजाना। जय श्री जीव आतमा प्राना।

जय सब दिन तिथि मास महूरति। जय नक्षत्र ग्रह राशि ज़रूरति।

जय श्री बर्ष लगन पल सूरति। जय मुद मंगल श्यामल मूरति।

जय आशिष प्रणाम नमस्कारा। जय दीनता हरौ दुख भारा।

जय सब घरी़ भूँख औ प्यासा। जय तरंग त्रिकुटी औ स्वांसा।३५।

जय सब अन्न फूल फल मेवा। जय जहाज नौका औ खेवा।

जय जल चर थल चर औ नभ चर। जय श्री धूप छाँह खुश्की तर।

जय योगिनी बीर बैताला। जय खेचर भूचर क्षेत्र पाला।

जय गर्न्धव यक्ष औ किन्नर। जय संसार के सब नारी नर।

जय सोऽहं औ श्री ओंकारा। जय श्री क्लीं और हुँकारा।४०।

जय सब सम्बत इसवी फ़सली। जय पट भूषण मणि धन असली।

जय षट रितु सब देश शहर पुर। जय सब खण्ड और द्वीप भुवन फुर।

जय सब दिशा और महिपाला। जय सब सागर सरिता नाला।

जय सब बन गिरि पोखर तलिया। जय सब बापी कूप औ गलिया।

जय सब लोक वेद गुनवाना। जय बलि रूप बुद्ध भगवाना।४५।

जय सब सुर मुनि दैत्य बखानों। जय सब प्रेम पितर मोहिं मानों।

जय कृपान बर्छी औ भाला। जय सब अस्त्र बने बिकराला।

जारी........