२७१ ॥ श्री शिव जी की झोरी ॥
पद:-
मैं तो श्री शिव के अमल कि झोरी।
चार खूँट लागी दुइ गाँठी सकत न कोई छोरी।
दिब्य रहौं नेकौं नहिं फाटौं श्वेत वरन छबि मोरी।
राम सिया ने मोहिं प्रकट करि दीन्ह शिवहिं बरजोरी।
भंग मिर्च औ सौंफ कासनी बिष उपबिष इकठौरी।५।
कूड़ी सोंटा दिब्य श्याम रंग साफ़ी रंग कि धौंरी।
कवहुँ स्वयं आप हैं घोटत कबहूँ उमा बरजोरी।
कबहूँ गणपति कबहूँ षड़ानन कबहूँ सरस्वती भोरी।
कबहुँ भैरव जी की बारी बीर भद्र दै घोरी।
साफी धरि छानै बरतन में गहि गड़बड़ दियोरी।१०।
थोड़ी देर बाद भंग का फेना शान्त भयोरी।
मन में सुमिरि राम सीता को शिव ने ध्यान कियोरी।
छबि श्रृंगार छटा को बरनै प्रगट पाय लियोरी।
गंगा जी को फेरि देंय शिव भरि कै दिब्य कटो री।
मैं परिवार के आप पियैं फिरि आनन्द हिये हिलोरी।१५।
गण बाहन व्यालन औ बिच्छुन मन भर खूब पियोरी।
दोनों समय होत यह लीला सुनो बचन नर गोरी।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै लागै तन मन डोरी।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै जो भव बन्धन तोरी।
अमृत पियै सुनै घट अनहद मिलैं देव मुनि दौरी।२०
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि निरखैं हँसि मुख ओरी।
नागिन जागि लोक दिखलावै चक्र चलैं सुख सोरी।
कमल फूलि कै देंय सुगन्धी वायु पंखा ढोरी।
जियतै में सब करतल करि ले तब मुद मंगल होरी।