२७२ ॥ श्री शिव जी का डमरु बाजा जी ॥
पद:-
मैं तो श्री शिव के कर का बाजा।
डमरु नाम विश्व सब जानत डिम डिम करत अवाज़ा।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो जियति लेहु सब साजा।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि पाय जाव बनि राजा।
सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद पिओ अमी रस ताजा।५।
सन्मुख राम सिया की झाँकी कबहूँ न होय अकाजा।
उमा रमा शारदा आय कर नित्य पवावैं खाजा।
अन्त त्यागि तन राम धाम लो जग छूटै जिमि छाजा।८।