२७४ ॥ श्री शिव जी का श्रृंगी कजा जी॥
दोहा:-
सिंगी कहे शिव को भजे सिया राम .....
ध्यान धुनी परकाश लय, सुर मुनि दर्शैं आय।
अनहद बाजै सुनो घट, अमृत पिओ अधाय।
अन्त त्यागि तन चलो घर, आवागन नशाय।
राम सिया का भोग जब, शिव जी होहिं लगाय।
साधि दोऊ कर अधर धरि, तब मोहिं देहिं बजाय।६।