२७८ ॥ श्री पाटेश्वरी माता जी ॥
पाटेश्वरी कहैं सुनिये सुत सतगुरु बिन भव तरै न कोई।
भजन के जौन सिंगार कहावत सो तो निकट न आवत कोई।
शान्ति शील सन्तोष दीनता सरधा छिमा दया नहिं होई।
सत्य धर्म विश्वास प्रेम आ भावे गया भीतर में खोई।
तन मन अजा असुर बस कीन्हो कैसे नाम बीज कोइ बोई।५।
या से जानि बूझि सतगुरु करि पाप ताप डारै सब धोई।
ध्यान धुनी परकाश दशा लय जाय तहां पर सुख से सोई।
सुर मुनि मिलैं सुनै घट अनहद पियै अमी रस सुरति मिलोई।
नागिनि जागै चक्र सब बेधैं खिलैं कमल रंग तत्व बिलोई।
सन्मुख राम सिया छबि छावैं जाय त्यागि तन आस निचोई।१०।