२७९ ॥ श्री हुल्का माता जी ॥
पद:-
हुलका कहैं सुनो सुत चित दै बीज मन्त्र है सब सुख कारी।
सतगुरु करि सुमिरै जो प्राणी सो जियतै निज काज सँवारी।
रंरंरं धुनि नाम कि होवै ध्यान प्रकाश समाधि सिधारी।
अमृत पियै सुनै घट अनहद सुर मुनि मिलैं कहैं बलिहारी।
नागिन जगै चक्र सब नाचैं फूलैं कमल महक दें प्यारी।
सियाराम प्रिय श्याम कि झाँकी सन्मुख रहै न होवै न्यारी।
अष्ट भुजा नित लाय खिलावैं पेड़ा बर्फी जल भरि झारी।
अन्त त्यागि तन अचल धाम ले भव का दुख दे लात से टारी।