२८१ ॥ श्री जय कुमार सिंह जी ॥
पद:-
भजिये महा मंत्र सुख दाई।
मेटत कठिन कुअंक भाल के सुर मुनि सब बतलाई।
सतगुरु करै मिलै तब मारग सब में वही सुनाई।
रं रं की धुनि होत अखण्डित रेफ़ बिन्दु कहलाई।
उत्पति पालन परलय करता ध्यान प्रकाश दिखाई।५।
अनहद नाद सुनाय अमी रस घट में देत पिआई।
पहुँचि समाधि में बैठि जाय जब सुधि बुधि वहां भुलाई।
मुनि देवन के दर्श करावै तन मन प्रेम मिलाई।
नागिनि को जागृत करिकै सब लोकन देत घुमाई।
षट चक्कर बेधन करि कै फिरि सातों कमल फुलाई।१०।
भाँति भांति की देत सुगन्धी तब रंग चमकाई।
अजा चोर जौ करत परिक्षा सब को शान्त बनाई।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि देत सामने छाई।
निर्भय औ निर्बेर देत करि कौन तुम्है धमकाई।
तन छोड़ाय साकेत जात लै आवागमन छोड़ाई।
जय कुमार कह बिनय मानि मम गुनिये सत्य लिखाई।१६।