२८३ ॥ श्री पं. प्रभू दत्त ब्रह्मचारी जी ॥
पद:-
भरत लखन रिपु दमन लाल को श्री सिय राम नाम की जाप बतायो।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोंवन सुनि हिय हर्षायो।
ताल बिमल अनहद की खुलि गई सुर मुनि आय के शीश नवायो।
अमृत पाय मस्त भे ऐसे कहत बनै नहिं जो सुख आयो।
नागिनि जगी चक्र सब बेधे कमल फूलि अति महक उड़ायो।५।
सुखमन स्वांस विहंग मारग ह्वै निज घर जाय देखि सब आयो।
दिब्य रूप ते राम सिय, राग सबके सन्मुख में छबि छायो।
सतगुरु करि जप की बिधि जानो सब के हित मैं यह पद गायो।
बाजी जीत गये सो जग ते जो तन मन को प्रेम में तायो।
परभू दत्त कहैं दुर्लभ तन पाय बृथा मति स्वांस गवाँयो।
बार्तिक:-
पहिले सीताजी ने शिव जी को जप का भेद बताय फिर हनुमान जी को बताया फिर लंका में मंदोदरी को बताया। श्री सीता जी ने श्री श्रुति कीर्ति जी, श्री माण्डवी जी और श्री उर्मिला जी को यहां उपदेश दिया। यह उपदेश राजगद्दी के दस दिन बाद सब को किया गया फिर बारह हजार सखा जो श्री राम जी के साथ अवतरित हुए थे, उन्हें दिया गया। वे सब इस पद के अधिकारी हो गये। फिर दस हजार सखि बाहर एक साथ जनक में अवतरित हुईं ब्राह्मण स्त्री वैश्य के घर को बताया।