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२८४ ॥ श्री राम जी का तरकस ॥


पद:-

मैं तो श्री हरि के सरन क तरकस।

हर दम भरे रहैं शर मम तन बड़े तेज औ करकस।

हरि मोहिं पीठि के ऊपर राखैं रेशम डोरि से जरकर।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि लेवै सो सब जानै मरकस।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि मिटे दुख भव डर कस।५।

सन्मुख राम सिया छबि छावैं दुष्ट देंय तजि अरकस।

अमृत पियै सुनै घट अनहद मिलैं देव मुनि धरकस।

अन्त त्यागि तन राम धाम ले फेरि गर्भ में परकस।८।