२८६ ॥ श्री राम जी का धनुष ॥
पद:-
धनुष कहैं मम सम नै जावैं। सो तो यहां वहां यश पावै॥
सतगुरु करि तन मन को तावै। ध्यान प्रकाश समाधि में जावै॥
नाम कि धुनि हर दम भन्नावै। अनहद सुनै अमी रस पावै॥
जागि सर्पिनी लोक लखावै। षट चक्कर बेधन ह्वै जावै॥
सातौं कमल फूलि लहरावैं। महक उड़ै तन मन हर्षावैं।५।
सुर मुनि मिलै संग बतलावैं। राम सिया सन्मुख छबि छावैं॥
कर्म लिखा बिधि सो मिटि जावै। अन्त त्यागि तन गर्भ न आवै॥
सो जियतै में जो यहाँ कमावै सोई सच्चा भक्त कहावै।
सो मेरे संग में चाप, जस रहती बसुयाम है।
सूरति नाम में आप साटि देउ आराम है।१०।