२८५ ॥ श्री राम जी के बाण ॥
पद:-
हम तो श्री राम के सर कहवावैं।
एक ते होंय अनेक देर नहिं मंत्र जोर जब पावैं।
दुष्टन का संघार देंय करि नेक देर नहिं लावै।
मोर सर्प पावक औ पानी वायू खूब चलावैं।
मोहि लेंय सब कटक जाय कर शान को धूरि मिलावैं।५।
जांय संदेश कहन कहि लौटैं आय के हाल बतावैं।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै सो जियतै लखि पावै।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोंवन खुलि जावै।
सुर मुनि मिलैं सुनै घट अनहद अमी पियै हरषावै।
सिया राम की झाँकी अद्भुत सन्मुख मे छवि छावै।१०।
निर्भय औ निर्वेर जाय ह्वै हरि यश सुनै औ गावै।
अन्त त्यागि तन राम धाम ले फेरि न जग चकरावै।१२।