२९९ ॥ श्री संयोग सिंह जी ॥
पद:-
करम गति टारो टारो टारो।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो तन मन प्रेम में जारो।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोंवन झनकारो।
अमृत पिओ सुनो घट अनहद सुर मुनि कहैं मम प्यारो।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि हर दम रूप निहारो।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजौ फेरि न जग पग धारो।६।