३०४ ॥ श्री शरारत शाह जी ॥
पद:-
राखो राम नाम पर सूरति।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो जो है तुम्है ज़रूरत।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि होय जो भव भय तूरति।
अजा असुर तन से सब भागैं जो हर दम हैं घूरति।
सुर मुनि मिलैं दिब्य साँटी कर हंसि हंसि चहुँ दिशि हूरत।५।
अमृत पिओ सुनो घट अनहद होय न कबहूँ पूरति।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि की सन्मुख रहै मूरति।
अन्त त्यागि तन निजपुर बैठो जहां बिषय नहिं बूरति।
नागिनि जगै चक्र सब नाचैं कमल खिलैं नहिं झूरति।
सच्चा भक्त वही है जानो किसी को देखि न चूरति।१०।