३०६ ॥ श्री भले मानुष शाह जी ॥
पद:-
राम श्याम हरि सब में राजत।
धनुष बाण मुरली कर धारें शंख चक्र गदा पद्म बिराजत॥
तीनों शक्ती संग में सोहैं ते निरखैं जे तन मन साँजत।
सतगुरु के चरनन की रज लै प्रेम से जे नैनन में आँजत।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर दम रग रोंवन ते बाजत।५।
अमृत पियैं सुनैं घट अनहद सुर मुनि मिलैं लिपटि कै गाजत।
माया असुर हारि सब भागैं सन्मुख आय सकैं नहि लाजत।
अन्त समय ते दिब्य देह धरि सिंहासन चढ़ि निजपुर भाजत।८।
शेर:-
भले मानुष उन्हें समझो जो निज को जियत में जाना।
नहीं तो छूटना मुश्किल जगत चक्कर में चकराना॥