साईट में खोजें

३०८ ॥ श्री बे फ़िक्र शाह जी ॥


पद:-

सुमिरो राम नाम बिन रसना।

सतगुरु करि जप भेद जानि कै तन मन प्रेम से लसना।

सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद होय अमी रस चखना।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख हरि प्रिय लखना।

माया असुर शान्त ह्वै बैठैं करै न कबहूँ गँसना।

अन्त त्यागि तन निज पुर बैठो जहां से फेरि न खसना।६।