३१३ ॥ श्री बचावन शाही जी ॥ (३)
सतगुरु करो मारग मिलै छूटै गरभ का लटकना।
धुनि ध्यान लय परकाश हो टूटै भरम का भटकना।
अनहद सुनो अमृत चखौ सुर मुनि मिलैं नित अटकना।
हर दम लखौ सन्मुख में राधा कृष्ण का क्या मटकना।
मुसक्याय कर दाहिन उठा दें प्रेम का मुख चटकना।५।
कण्ठ गदगद पुलक तन हो गुदगुदी कोइ खटकना।
माया असुर होवैं बिदा फिर दे सकैं नहिं झटकना।
अन्त निज पुर बास लो जहँ से न हो फिर सटकना।८।