३२० ॥ श्री मान शाह जी ॥ (२)
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै राम नाम में तन मन मांजै।
नस नस हड्डी हड्डी बोलै रोम रोम ते होंय अवाजै।
सुर मुनि मिलैं पियै घट अमृत अनहद सुनै बिमल क्या बाजै।
ध्यान प्रकाश दशा लय होवै मानहु बना जियति सब काजै।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि दम सन्मुख में तब राजें।
अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन अचल धाम में जाय बिराजै।६।