३२३ ॥ श्री भली जान जी ॥ (२)
हाड़न हाड़न रगन रगन सब रोंवन रोंवन धुनि होती।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो मोह नींद में क्यों सोती।
ध्यान में नाना लीला देखौ बरै अखण्डित तहँ जोती।
लय चलि कर्म शुभा शुभ जारो सुधि बुधि तुरत तहां खोती।
प्रेम की सारी तन में पहिरो फेंको छोरि द्वैत धोती।५।
डरि सब असुर बिदा हों तन से संग भगै माया रोती।
सिया राम की झाँकी सन्मुख झरैं रंग रंग के मोती।
सुर मुनि मिलैं लिये कर चन्दन मुख पर हँसि देवैं पोती।
उमा रमा शारद सब शक्ती नित आकर गहि तन टोतीं।
मुख चूमैं फिर हिये लगावैं नाम बीज कहैं खुब बोतीं।१०।
अमृत पिओ सुनो घट अनहद काहे वयस बृथा खोती।
तन तजि आवा गमन मिटावो फिरती जग कूड़ा ढोती।
श्री स्वामी रामानन्द जी महाराज जब चारों धामों की यात्रा कर
के लौटे अर्थात श्री काशी जी आये उस समय का निम्न पद है।१४।
पद:-
सतगुरु हमारे स्वामी रामानन्द स्वयं सरकार थे।
क्या कहूँ मुख से सबी सुक्खों के सुख का सार थे।
श्याम रंग कोमल बदन द्युति के उड़त झलकार थे।
नारि नर बहु संत आते होत नित दरबार थे।
इच्छा सबन की करत पूरी दानि आप उदारि थे।५।
शिष्य जो द्वादश रहे सो देव मुनि अवतार थे।
शान्ति शील औ दीनता सब गुण के ज्ञानागार थे।
सोरह सहस क्या शिष्य नर औ नारि यमन शुमार थे।
हिन्दू भी एक करोड़ पक्के प्रेम में मतवार थे।
बसुधो बरुण अग्नी पवन औ गगन तहँ रखवार थे।१०।
परदा हटाने औ गिराने में सुरेश हलुकार थे।
पंखा हिलाने में गजानन बीर एकै तार थे।
मुरछल करन में काल भैरव मानते नहिं हार थे।
चरण सेवा में श्री जी जिनके प्राण आधार थे।
भीतर औ बाहेर कुटी के धनपति झाड़ू बरदार थे।१५।
जल काठ कण्डा के लिये षट मुख बड़े चटकार थे।
तन्दुल व मिश्री क्षीर घृत लाने में शिव ज़रदार थे।
हंडी पै पोती फेरने में वीर भद्र हुशियार थे।
पायस बनाने में चतुर बजरंग प्राण से प्यार थे।
भोग ठाकुर का लगाने में तो बिधि बलिहार थे।२०।
सब को परोसन में गरुड़ जी श्रद्धा ही में ढार थे।
जय घोष करने में तो काग भु शुण्डि सब से न्यार थे।
पत्तल उठाने में बृहस्पति जी बड़े बलदार थे।
ठाकुर की सेवा में कपिल मुनि दिवस निशि तय्यार थे।
दीपक लगाने में बड़े फुर्तील अश्वनी कुमार थे।२५।
जनता के स्वागत में जुटे मनु जी रहत हर बार थे।
पट पात्र फल धन देन हित बलि जी बने मुख्त्यार थे।
अन्न पूर्णा जी ने तहँ पर भर दिये भण्डार थे।
भाँति भाँति के कुटी पर आते भी नित उपहार थे।
निरखतै बनते थे वहँ के जौन कारोबार थे।३०।
असुर भी नर तन को धरि आ कर करत दीदार थे।
प्रात औ मध्याह्न सायंकाल क्या सदाचार थे।
जारी........