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३२५ ॥ श्री कानी माई जी ॥


पद:-

धन पुत्र यश से नारि नर की खोपड़ी भरती नहीं।

बासना आगे बढ़ै पीछे कदम धरती नहीं।

धर्म्म पर मन की मती चल कर के फिर गिरती नहीं।

तब तलक दुख बेलि कटि सुख की लता फलती नहीं।

सतगुरु से सुमिरन जानि कै जो मार्ग पर परती नहीं।५।

वह कभी संसार सागर से सुनो तरती नहीं।

उनके बिना माया हमेशा पीटती डरती नहीं।

छर दर उसे को करि सकै वह अग्नि में जरती नहीं।

दीनता औ शान्ति गहि हिम्मत को जो हरती नहीं।

सो जियति सब तै कर होवै अमर मरती नहीं।१०।

धुनि ध्यान लय परकाश सन्मुख श्याम छबि करती नहीं।

तब तलक बिधि की लिखी गति भाल से टरती नहीं।१२।