३२६ ॥ श्री पानी शाह जी ॥
पद:-
तीनि बार हरि माफ़ करैं जो जानि ज़हर को खावैं।
उलटी दस्त दवाई से सब तन से बिष बिलगावैं।
चौथी बार छूटि जाय जड़ तन प्रेत योनि में जावै।
जितनी आयू रही हो बाकी उतनी लै दुख पावै।
जल अशुद्ध नित मिलै पियन को कैसे प्यास बुझावै।५।
मल भोजन करै रोय रोय औ मन ही मन पछितावै।
उनके नाम से घर का कोई प्रेम से बिप्र जेवाँवै।
तौ कछु पुण्य जाय मिलि वा को बार बार हर्षावै।
कथा कीरतन पूजन सुमिरन तारा चहै करावै।
तो उस योनि को त्यागि देंय सीधे बैकुण्ठ सिधावै।१०।