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३३०॥ श्री ठाकुर जद्दू सिंह जी परिहार॥


पद:-

करो सतगुरु न हो बद्दू। भजो हरि नाम को दद्दू।१।

मरत जन्मत हुये मद्दू। नहीं कछु चेतते भद्दू।२।

पाप का भार शिर लद्दू। खांय किरि काल जिमि कद्दू।३।

बिनय सबसे करै जद्दू। जियति लखि लेव निज हद्दू।४।