३४२ ॥ श्री ठाकुर बहोरी सिंह जी ॥
पद:-
तन मन का सम्बन्ध घना है।
मन का दुख सुख तन को ब्यापत तन का दुख सुख मनहिं बना है।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै सो दोनो के पार छना है।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुखता के रूप तना है।
अमृत पियै देव मुनि दर्शैं हर दम अनहद सुनै ठना है।५।
नागिनि जगै चक्र सब बेधैं कमल खिलैं आनन्द सना है।
निर्भय औ निर्वैर जियति सो जा को स्थिर रहत मना है।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजै फिर जग जन्मि न होत फना है।८।