३४३ ॥ श्री सटालू शाह जी ॥
मुरशिद बचन पर जाय तुल सो जियत भव से पार हो।
धुनि ध्यान लय परकाश पावै कर्म दोनों क्षार हों।
अनहद सुनै अमृत पियै सुर मुनि के संग खेलवार हो।
सन्मुख में सीता राम की छबि हर समय दीदार हो।
नर नारि तन मन प्रेम से सुमिरन करो निशि बार हो।
कहते सटालू त्यागि तन चट जाव वतन सिधार हो।६ऊ