३५१ ॥ श्री ठाकुर गुर दयाल सिंह जी ॥
पद:-
देखौ श्याम प्रिया हंसि हेरत।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै जे भव दुख को पेरत।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै मिलैं देव मुनि टेरत।
अनहद सुनौ पिऔ घट अमृत असुर भगैं मुख फेरत।
अधिकारी या के हैं सोई तन मन प्रेम में जे गेरत।५।
धन्य धन्य पितु मातु हैं उनके जे हरि नाम में भेरत।
जो कोइ उनके पास में आवै कहैं नाम का ले रत।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजैं जहां न कोई घेरत।८।