३५२ ॥ श्री पावन सिंह जी ॥
पद:-
भजन बिन मन न कभी ठहराय।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो नयन श्रवन खुलि जांय।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शै से भन्नाय।
सुर मुनि मिलैं सुनौ घट अनहद पिओ अमी हर्षाय।
नागिनि जगै चक्र षट बेधैं सातौं कमल फुलाय।५।
माया असुर भागि जांय तन से हांथ मलैं पछितांय।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख दें छबि छाय।
पेड़ा बर्फी जल समेत नित सुर पति दें पहुँचाय।
पाय होहु जो कछु बचि जावै सो वै लें गठिलाय।
शची समेत जाय निज पुर में पावैं सुख से भाय।१०।
सुमिरन बिन बिरथा तन जानो कहेन सबन हित गाय
जियति जानि तन तजि साकेत में बैठो दुख मिटि जाय।१२।