३५४ ॥ श्री लाल सिंह जी ॥ (२)
तन मन प्रेम से शिव महिम्न की पाठ करै जो कोई।१।
धन यश पुत्र भक्ति बर दें शिव रहै सुखी नर सोई।२।
नर नारी सतगुरु करि चेतो समय रहे क्यों खोई।३।
अघ संघारन रा को सुमिरो आवागमन न होई।४।
तन मन प्रेम से शिव महिम्न की पाठ करै जो कोई।१।
धन यश पुत्र भक्ति बर दें शिव रहै सुखी नर सोई।२।
नर नारी सतगुरु करि चेतो समय रहे क्यों खोई।३।
अघ संघारन रा को सुमिरो आवागमन न होई।४।