३५४ ॥ श्री लाल सिंह जी ॥
पद:-
एक श्लोक पढ़ै गीता का तन मन प्रेम से नारी नर।
सत्य बचन यह मानो मेरा पाप ताप सब जावैं जर।
दर्शन देवैं कृष्ण मनोहर अधर पै सुन्दर मुरली धऱ।
मन्द हंसनि क्या चितवनि बांकी नूपुर दोउ पग छम छम कर।
सुर मुनि मिलैं शीश कर फेरैं कहैं मांगिये तो कछु बर।
अऩ्त समय बैकुण्ठ धाम ले बोलैं जय जय बिधि हरि हर।६।