३५६ ॥ श्री प्रभाकर जी ॥
पद:-
अर्थ न जप में अनमिल आखर। सतगुरु का जानै कोइ चाकर।
शिव बजरंग शेष औ लोमश। मस्त भये सुर मुनि बहु पाकर।
महा वाक्य औ महा मंत्र यह। परम तत्व लघु मंत्र बताकर।
अजपा रेफ़ बिन्दु कोइ भाख्यौ। कोई बीज मंत्र कह्यौ आकर।
सोऽहं का आधार कह्यौ कोइ। कोइ ओंकार क प्राण सुनाकर।५।
कटस्थो अक्षर नि:क्षर। कोइ रंकार कह्यो मुसक्या कर।
हैं ह्वैगे ह्वै हैं हर दम रहैं। सारा विश्व रचा है ताकर।
या से चेत करो नर नारी तन समझो जिमि पाकी काकर।
मन एकाग्र करिकै जियतै में पिसि जाओ जिमि काँकर।
रूप प्रकाश समाधि ध्यान धुनि यही देत कहते परभाकर।
अन्त त्यागि तन निज पुर बैठो छूटै दुख की साँकर।११।