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३५७ ॥ श्री पलटन शाह जी ॥


पद:-

प्रेम में तन मन को जे जन देत हैं बलिदान करि।

छा दें छटा सन्मुख में उनके श्याम श्यामा आन कर।

अमृत पियै अनहद सुनै सुर मुनि मिलैं लपटान कर।

असुर माया शान्त हों फिर किमि सकै दौरान कर।

चेत कर सुमिरन करो यह बैन साँचे जानकर।५।

पावो पता गहि लो लता खाओ खता क्यों छान कर।

ख्याल नाम पै हर समय कर लेव ताना तान कर।

गुदरी न हो दागी बचो गुनि लेव यारो ज्ञान कर।

जियतै में सब सुख खान लो सतुगुरु बचन को मान कर।

अन्त तन तजि जाव निजपुर बासना सब पान कर।१०।