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३६७ ॥ श्री करीम जान जी रण्डी ॥


पद:-

मैं बार बार परनाम करूँ गुरुदेव आपके चरनों में।१।

सुर मुनि सब नित प्रति गुन गावत तन मन प्रेम ते शरनों में।२।

आपकी कृपा बिना सुख कबहुँ मिलत न कोई वरनो में।३।

या से जीव परे चकरावैं चौरासी के झरनों में।४।