३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥(७)
पद:-
हाट बाट औ घाट क रहना साधक का यह काम नहीं।
गाजी कहैं खूब हम छाना भजन क वहँ पर नाम नहीं।
लोभ में हर दम माते रहते तप सम कोई दाम नहीं।
अहंकार औ कपट जहां पर वहँ पर मिलते राम नहीं।
गर्भ कि बात भूल कर बैठे नर तन सम कोइ चाम नहीं।५।
चित्रगुप्त के खाता में है ग़ैर हाजिरी खाम नहीं।
अन्त त्यागि तन नर्क में पड़िहै जहँ पल भर बिश्राम नहीं।
सतुगुरु करि मन को बस करिये तब कोई इलज़ाम नहीं।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शै से हो थाम नहीं।
हर दम राम सिया रहैं सन्मुख पकड़ सकैं तब बाम नहीं१०।
इस प्रकार बिन भजन को जाने कोई भा निष्काम नहीं।
महा प्रकाश बनत है देखत जहां तिमिर औ घाम नहीं।
को बरनै साकेत कि शोभा ऐसा कोई धाम नहीं।
अगणित भक्त रूप रंग हरि के कहीं पर ऐसा आराम नहीं।
शान्ति दीनता प्रेम बिना कोइ पाया शब्द क झाम नहीं।
सुमिरन बिना धाम निज जाना और तरीका आम नहीं।१६।