३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (१४)
रसरी राम नाम अति पोढ़ी ता में बंधा सबै संसार।
गाज़ी कहैं बिना सतगुरु के कोई न जानन हार।
अनुभव बिना जाय डिगि प्राणी पढ़ि सुनि रहै पुकार।
वाक्य ज्ञान अंधा है भक्तों भेजै नर्क मँझार।
ध्यान प्रकाश समाधि धुनी सन्मुख सिया राम निहार।५।
सुर मुनि मिलैं बिहँसि उर लावैं बोलैं जै जै कार।
अमृत पियै गगन ते बरसै अनहद की गुमकार।
नागिन जगै चक्र षट बेधैं कमल खिलैं एक तार।
तरह तरह की महक उड़ै तब तब मन हो मतबार।
अन्त त्यागि तन निजपुर राजौ दोनौ दिसि बलिहार।१०।
दोहा:-
गाज़ी कह विद्या वही करै अविद्या दूर।
तब तो वा को तन सुफल,नाहीं झूर क झूर।