३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (१३)
नाम प्रेम रस जो पियै, तौन भक्त जग सूर।
गाज़ी कह जे चूक गे, गिरि हों चकना चूर॥
पद:-
नाना सिद्धी सिख दुनिया को ठगते नहीं आप ठगाते हैं।
तन छूटन की देरी भक्तों खुब नर्क में पीटे जाते हैं।
निशि बासर कल नहिं एकौ पल, मुख बाय बाय चिल्लाते हैं।
तहँ कौन सहायक हो उनका जिनके हित फूले जाते हैं।
धन धाम मही परिवार सही अब कोई काम न आते हैं।५।
सब सोच बिचार अचार भई मन ही मन में पछताते हैं।
क्या बात करैं जम दूतन ते जो दया न उर में लाते हैं।
नैनन से नेक न सूझ पड़ै औटाय सीस रंजवाते हैं।
ठेठर लटकैं तन हैं कुरूप अंधियार गंध लहराते हैं।
मल मूत्र पीव औ रक्त मिलै पावै किमि देखि न पाते हैं।१०।
जमदूत पकड़ि मुख में नावैं निगलैं औ उलटि गिराते हैं।
गाज़ी कहैं सुमिरन जिन जाना तिनको हरि पास बिठाते हैं।१२।