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३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (३२)


पद:-

चपलता जिस भगत में हो उसे चंचल बुरा जानो।

किया कंठस्थ पढ़ि सुनि कछु बना जग का धुरा मानो।

मान हित कर रहा चेला धरै गर्दन छुरा जानो।

त्यागि तन दुख सहै नाना चला यम पुर ढुरा भानो।

मूत्र मल का मिलै भोजन वही वहँ की सुरा जानो।५।

पहुँचतै जाय ह्वै उलटी रहै तन सब झुरा जानो।

तुरत ही देंय जम गारी खोंस दें मुख हुरा मानो।

हाय रे हाय कहि फटकैं चलै ऊपर कुरा मानो।

दीनता शान्ति बिन आये नहीं कोई फुरा जानो।

कहैं गाजी करै सतगुरु वही निज पुर घुरा जानो।१०।