३८० ॥ श्री तितुलिया माई जी ॥
पद:-
ऊपर से राम राम साधे हैं भक्ती। भीतर में पूरी है धन की आसक्ती।२।
लीन चाहत तन तजि कै मुक्ती। राम नाम की मिली न युक्ती।४।
चलि सतगुरु के ढिग जे सिखती। वै तन तजि निज धाम में रुकती।६।
कहै तितुलिया फिरती तकती। तन अनमोल पाय हाय चुकती।८।