३९९ ॥ श्री बकचोंचो शाह जी ॥ (२)
पद:-
श्वांसा त्रिकुटी ब्रह्म रंध्र श्रुति चारि मोक्ष के द्वारे जी।
सतगुरु करि जपि भेद जानि ले तब खुलि जांय किवारे जी।
नागिन जगै चक्र षट घूमैं सातौं कमल फुलारे जी।
सुर मुनि मिलैं सुनै घट अनहद अमृत पियै सुखारे जी।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख सदा निहारे जी।५।
ध्यान धुनि परकाश दशा लय सुधि बुधि तहां बिसारे जी।
पाप पुण्य की नास जाय ह्वै कर्म की गति को टारे जी।
अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन राम के धाम सिधारे जी।८।
दोहा:-
बकचोंचों कह भक्त जन, दीन बनो सुख होय।
नाहीं तो पछिताओगे, तन अमोल को खोय।
सब के हित की बात यह सुरति शब्द पर देहु।
ध्यान धुनी परकाश लय रूप सामने लेहु।
इस अजपा के गहे ते वोऊ तीनि खुलि जाहिं।५।
चारों ध्यान क सुख मिलै नेकौ संशय नाहिं।
शिव शंकर ने यह बिधी, मोहिं दीन बतलाय।
महा सुखी मैं ह्वै गयो, सत्य शब्द को पाय।८।